सहारनपुर- बेटी हूँ, लड सकती हूँ:-शाजिया मसूद
उत्तर प्रदेश- जरूरत से ज्यादा जुल्म और नाइंसाफी, इंसान को बगावत पर मजबूर कर देती है और अगर बगावत, बाप की गंगा जमुनी तहजीब और साझा संस्कृति साझा विरासत की सियासत को बचाने की हो, तो फिर उस बगावत मे मजा और ज्यादा हो जाता है। ऐसा ही कुछ ठिठुरती सर्द हवाओं के बीच शाजिया मसूद के एक डायलॉग *बेटी हूं, लड़ सकती हूं* ने सियासी फिजाओं में गर्मी पैदा कर दी और लोग उनके अंदर मरहूम रशीद मसूद की छवि देखने लगे। और अब *शाजिया मसूद* ने भी तय कर लिया है कि अब वो वालिद ए मोहतरम मरहूम रशीद मसूद की सियासी विरासत को बचाने की खातिर उनके दीवानों को मायूस ना करके गणतंत्र दिवस के पर सहारनपुर में दस्तक देंगी और सियासी पारी की शुरुआत करेंगी।
मरहूम रशीद मसूद के उरूज के दौर से ही अपने बच्चों की परवरिश के साथ-साथ अपने कारोबार को संभाल रही थी, सियासत के दॉव पेच को *शाजिया मसूद* भली-भांति जानती थी, मगर सियासत में उन्हें कोई रुचि नहीं थी, लेकिन जब उन्होंने मरहूम रशीद मसूद के सियासी वारिशों की पैतरेबाजी, खुदगर्जी, मौका परस्ती, उल जलूल बयानों के जरिए बाप की सियासी विरासत को तार-तार होते देखा,तो तो उन्होंने बहुत प्रयास किए कि परिवार एकजुट रहे और रशीद मसूद की सियासी विरासत को आगे बढ़ाया जाए, मगर यहां *शाजिया मसूद* के साथ भी इसका उल्टा यह हुआ, कि कैंसर से पीड़ित एक मॉ से ही उसकी इकलौती बिटिया को मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया। स्थानीय पुलिस प्रशासन के उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद कैंसर से तड़प रही मां से इकलौती बेटी को मिलने की इजाजत, तो मिली मगर बेटी का स्वागत कुछ लोगों ने गालियों के साथ किया। यहां तक भी *शाजिया मसूद* को ज्यादा बडी दिक्कत इसलिए नहीं हुई, क्योंकि वो बचपन से अपने लोगों के इस नुमाया किरदार को अच्छी तरह से जानती थी। सबसे ज्यादा दिक्कत और परेशानी तब हुई, जब घर के लोगों ने बाहर के लोगों को एक बेटी के विरुद्ध वीडियो संदेश देकर *अपमानित और प्रताड़ित* करने का दुस्साहस किया।
बस यही वो कुछ लम्हे थे, कि *शाजिया मसूद* ने तय किया कि अब जुल्म ज्यादा बर्दाश्त नहीं होगा और ना ही अपने वालिद ए मोहतरम मरहूम रशीद मसूद की सियासी विरासत को तबाह और बर्बाद होने दिया जाएगा। मरहूम रशीद मसूद की इसी सियासी विरासत को बचाने की खातिर बेटी *शाजिया मसूद* ने शहर सहारनपुर के तमाम चौराहों पर बड़े होल्डिंग्स और गली मौहल्लों की दीवारों पर पोस्टर चस्पा करके कह दिया कि *बेटी हूं, लड़ सकती हूं* बेटी के इस एक बेहद गंभीर डायलॉग ने ठिठुरते सर्द मौसम में सियासी टेंपरेचर ऐसा बढ़ाया, कि बहुतो के दिन का चैन छिन गया और रातों की नींद उड़ गई। जानकारी के मुताबिक *शाजिया मसूद* गणतंत्र दिवस पर झंडारोहण के मौके पर सहारनपुर की सियासत में दस्तक देकर अपने वालिद ए मोहतरम मरहूम रशीद मसूद की सियासी विरासत को बचाने की खातिर संघर्ष का बिगुल बजाएंगी।