बसपा पर मुसलमानों को नही है भरोसा ,तो वहीं एक अदद उम्मीदवार के लिए भटक रही सपा.
■ पत्रकार इन्तखाब आजाद
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सहारनपुर, उत्तर प्रदेश यह कड़वा सच है कि निकाय चुनाव में बसपा, भाजपा का मुकाबला दूर-दूर तक नहीं कर सकती, अगर भाजपा का मैनेजमेंट सही रहा और भीतरघात ना हुई, तो भाजपा की जीत करीब-करीब पक्की है। सूत्रों की माने तो भीतर घात से खुद को बचाने की खातिर ही सत्तारूढ़ दल ने सहारनपुर में महापौर की सीट पिछड़े वर्ग की झोली में डाली है। लेकिन इसके साथ ही यह भी कटु सत्य है, कि सपा के कुछ बड़े नेता भले ही नगर निकाय चुनाव में वो अस्तित्व हीन हो, लेकिन वो अंदर ही अंदर बसपा के साथ भी खड़े है।
■ बसपा के नेता जहां महापौर के चुनाव को लेकर दिमाग में एक बडी गलतफहमी पाले हुए हैं वहीं सपा के वो कथित नेता महापौर हेतु एक अदद प्रत्याशी के लिए दर ब दर भटक रहे है, जिन्हें ना सिर्फ हिंदू वोट नहीं मिलता बल्कि वो विधानसभा चुनाव मे मुसलमानों का एकतरफा वोट लेने के बावजूद अपने बूथ पर सिर्फ इसलिए चुनाव हार जाते है,कि उन्हें हिन्दू वोट कतई नही मिलता और कमाल देखिए वो साहब मुसलमानों में खड़े होकर भाजपा तथा हिन्दुओ के खिलाफ, उनके दिलो और दिमाग में डर बिठाकर ऐसा हव्वा खड़ा करेंगे,कि जैसे भाजपा और भाजपा समर्थित हिंदू कोई आतंकवादी हैं और यह ही भारत की धरती से भाजपा को आज ही उखाड़ फेंकेगे। जबकि हकीकत यह है कि सपा और बसपा के तमाम नेता भी मिलकर भाजपा जैसे विशाल शिक्षित संगठन का मुकाबला करने में रत्ती भर भी सक्षम नहीं है। अगर मेरी यह बात झूठ हो, तो नगर निकाय चुनाव पश्चात चुनाव परिणाम देखकर खुद समझ लेना
■ लेकिन अफसोस इस बात का है कि समाजवादी पार्टी के पास मौजूदा दौर में दो विधायक, एक एमएलसी, पूर्व विधायक, कंई दर्जा प्राप्त पूर्व मंत्री होने के बावजूद समाजवादी पार्टी को एक अदद प्रत्याशी महापौर के चुनाव की खातिर नहीं मिल पा रहा है, इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सपा के विधायकों के मोबाइल मखसूस लोगों के लिए छोडकर, अवाम की खातिर अक्सर बंद रहते हैं, और वह अपने काम धंधा मैं व्यस्त हैं,उधर सपा के कुछ स्वमं घोषित बड़े नेता वकफ संपत्तिया खुर्दपुर कर और करवा कर धन एठकर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं उन्हें जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नही। यही स्थिति बसपा में भी है बसपा के दलित नेताओं पर मुसलमान भरोसा नहीं करते। कुछ दलित नेता भाजपा के साथ मिले हुए हैं, तो जिस कथित मुस्लिम नेता के सहारे बसपा के लोग अपनी नैया पार चाहते हैं वो खुद अपने पिछले कर्मों की वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुशासन और सख्ती के चलते खौफजदा है कि कहीं कोई बड़ी फाइल ना खुल जाए। वो भी अब डरे हुए हैं। सपा बसपा की सरकारो में तो, वो बंदरिया उछल कूद भी कर लेते थे लेकिन इस सरकार में तो, वो डर के कारण अब कतई खामोश पड़े हैं, उधर पारिवारिक झगड़े बेइंतहा हैं उनसे भी फुर्सत नहीं।
■ ऐसी सूरत में शहर का मुसलमान भी यही सोच और महसूस कर रहा है कि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारे है। प्रशासन भाजपा के अधीन है। यदि गलती से भी बसपा आदि का कोई प्रत्याशी जीत भी जाए,तो वो काम नहीं कर पाएगा, ठीक वैसे ही, जैसे सपा के आजम खान ने पूरा नगर निगम 5 सालो तक अपने मित्र सरफराज खान के घर से ही संचालित करवा दिया था। तब नगर निगम के तमाम आला अधिकारी वही सरफराज खान के आगे शीष आसन किया करते थे, ऐसा ही भाजपा की सरकार में भी हो सकता है, तो फिर हम क्यों ना सीधे एजेंटों को बीच से हटाकर अपना वोट भाजपा को ही दें। कम से कम क्षेत्र का विकास तो होगा ही और ऊपर से लड़ाई झगड़ों तथा दूसरे लफ़्डो से भी सुरक्षा होगी। तो कुल मिलाकर जहां बसपा पर भरोसा नहीं, वहीँ सपा कमजोर है। अब सपा को एक अदद प्रत्याशी तक नहीं मिल पा रहा और भाजपा का शिक्षित संगठन पूरी शिद्दत के साथ मैदान में खड़ा है ऊपर से उनकी सरकार भी है, तो ऐसे में भाजपा का मेयर बनना लगभग तय है।