लम्पी वायरस से बचाव को लेकर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा एडवाइजरी जारी, डीएम ने बताए लक्षण व बचाव के उपाय

लम्पी वायरस से बचाव को लेकर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा एडवाइजरी जारी, डीएम ने बताए लक्षण व बचाव के उपाय

जिलाधिकारी अरविन्द सिंह के निर्देशन में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा लम्पी स्किन डिंजीज ( एल0एसएडी0 ) से बचाव को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है।
जिलाधिकारी ने कहा कि लम्पी पशुओं में होने वाली वायरस जनित बीमारी है जो मक्खियों और मच्छरों की कुछ प्रजातियों और टिक्स द्वारा एक पशु के शरीर से दूसरे पशु के शरीर में फैलता है। लंपी वायरस से संक्रमित पशुओं को तेज बुखार आने के साथ ही उनकी भूख कम हो जाती है, इसके अलावा पशुओं के चेहरे, गर्दन, थूथन, पलकों समेत पूरे शरीर में गोल उभरी हुई गांठें बन जाती हैं। उन्होंने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज एक विषाणुजनित रोग है। इस रोग से ग्रसित होने पर मवेशी सम्पूर्ण शरीर की चमडी विशेष रूप से सिरगर्दन, थूथन, थनों,गुदा व अंडकोष या योगिगुख के बीच के भागों पर गांठों के उभार वन जाते है। कभी भी पूरा शरीर गौठों से ढक जाता है।
लम्पी रोग से ग्रसित होने पर पशु के श्वसन पथ में घाव होने से सॉस लेने में कठिनाई होती है, पशुओं का वजन घट जाता है,शरीर कमजोर हो जाता है। बचाव के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम निकटतम पशुचिकित्साधिकारी को सूचित करें, प्रभावित पशु को स्वस्थ पशु से अलग करें। प्रभावित पशुओं का आवागमन प्रतिबन्धित करें। पशुओं को सदैव साफ पानी पिलायें। पशु के दूध को उबाल कर पियें। पशुओं को मच्छरों, मक्खियों, किलनी आदि से बचाने हेतु पशुओं के शरीर पर कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें। पशुबाड़े और पशुखलिहान की फिनायल या सोडियम हाइपोक्लोराइट इत्यादि का छिड़काव कर उचित कीटाणु शोधन करें। बीमारी पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाडे से दूर रखना चाहिए। पहले स्वस्थ पशुओं को चारा व पानी दें, फिर बीमार पशुओं को दें। बीमार पशुओं को प्रबंधन करने के पश्चात हाथ साबुन से धोयें।
लम्पी स्किन डिजीज होने पर सामूहिक चराई के लिए अपने पशुओं को ना भेजें। पशु मेला एवं प्रदर्शनी में अपने पशुओं को ना भेजे। बीमार एवं स्वस्थ पशुओं को एक साथ चारा-पानी न करायें। प्रमावित क्षेत्रों से पशु खरीद कर ना लायेें। यदि किसी पशु की मत्यु होती है, तो शव को खुले में न फेकें एवं वैज्ञानिक विधि से दफनायें तथा रोगी पशु के दूध को बछडे को न पिलायंे।

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