रेतीली जमीन पर उगा डाले लाखों की सब्जियां

रेतीली जमीन पर उगा डाले लाखों की सब्जियां

उतरौला.बलरामपुर. बरेली व सुजानपुर से आए सब्जी किसानों ने नदी किनारे सब्जी फसल उगाकर कामयाबी की राह सबको दिखाई है। स्थानीय किसानों के लिए बेकार हो चुकी जमीन पर सब्जी उगा कर यह किसान लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं। नदी का सूना पड़ा किनारा अब हरियाली से हरा-भरा दिखाई पड़ रहा है। दूर दराज के लोगों द्वारा अपनी फसल के साथ-साथ उनके हाथों से बनाया गया सुंदर मकान भी देखने के लिए लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। नदी किनारे उत्पादित सब्जी फसल आपूर्ति गोण्डा, बलरामपुर के साथ-साथ बस्ती,डुमरियागंज,

गोरखपुर तक की जा रही है। राप्ती नदी के तटवर्ती गांव अल्लीपुर, भभनपुरवा, बिस्दा बनिया रुस्तम नगर, कटरा, महुआधनी, मटयरियाकर्मा, बौड़िहार, गोनकोट, बाजार, फतेहपुर, हसनगढ़, भरवलिया, छीटजीत, नंदौरी के किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन रेत में तब्दील हो चुकी किसानों के लिए उसमें खेती करना पत्थर पर दूब उगाने जैसा होता है।

*गोबर की खाद व हल्के कीटनाशक दवा का प्रयोग करते हैं*

नवंबर माह में बरेली सुजानपुर के खेतीबाड़ी करने वाले कुछ लोगों ने नदी तटवर्ती गांव के किसानों से सम्पर्क किया। कहा कि वे उनकी निष्प्रयोज्य पड़ी जमीन को किराए पर लेना चाहते हैं। जिस जमीन से पहले कुछ नहीं मिल रहा था,

आज लगभग पांच ट्रक सब्जियां प्रतिदिन अन्य जिलों को भेजी जाती हैं।

उसका किराया पाकर किसान गद-गद हो गए हैं नवंबर के अंतिम सप्ताह में बरेली व सुजानपुर के सब्जी खेती करने वाले लगभग 15 किसान परिवार सहित नदी तटवर्ती इलाके में पहुंच गए। महिलाओं व युवाओं की संख्या मिलाकर 50 है। सबसे पहले उन्होंने रेतीली जमीन से झाड़-झंखाड़ को साफ किया। उसके बाद आने जाने का रास्ता बनाया। दिसंबर माह तक नदी किनारे लगभग 15 अस्थाई मकान बनाकर खड़े कर दिए। उसके बाद ट्रैक्टर से रेत की जुताई कर डाली। सीढ़ियां बनाकर लौकी, तरोई, कद्दू, भिंडी,खीरा आदि की बुआई की जाती है।

किसान शहजाद अली बताते हैं कि रेत में सब्जी उगाना आसान काम नहीं होता।भारी लागत के साथ-साथ कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। गोबर की खाद का इस्तेमाल करना पड़ता है। सब्जियों की कीट से बचाने के लिए हल्की दवा का छिड़काव कराया जाता है। किसान फखरुद्दीन का कहना है कि उत्पादन से अधिक परिश्रम सब्जियों को बिक्री में करना पड़ता है। सब्जियां इतनी मात्रा में पैदा होती हैं कि उन्हें उतरौला में नहीं खपाया जा सकता। मंडी का भाव पता कर इन सब्जियों की बिक्री की जाती है। इरफान ने बताया कि सब्जी की खेती में लागत और जोखिम अधिक होता है। दिन रात परिश्रम करके ही इन सभी की खेती की

जा सकती है। रेत में फेवान लता वाली सब्जियों को ही उगाया जा सकता है, जो पूर्ण रूप से आर्गेनिक होती हैं। याकूब अली बताते हैं कि सब्जियां तीन महीने में तैयार हो जाती है। इस समय तरोई, कडू, लौकी आदि सब्जियां तैयार हैं, जिनकी विक्री की जा रही है।

सिंचाई के लिए पंपिग सेट मशीन का प्रयोग किया जाता है। ट्रांस्पोर्ट के लिए साधन का इंतजाम करना पड़ता है। कहा कि बरसात आने के पहले ही सभी लोग अपने घर वापस चले जाएंगे। एक परिवार लगभग से सात लाख रुपए की कमाई घर लौटता है।

ककड़ी, तरबूज व खरबूज के बीज बोए। रात दिन काम चलता रहा। रेत में श्रमिकों को काम करता देख स्थानीय किसान उनका उपहास करते। धीर धीरे अंकुरित बीजों ने पौधे का रूप ले लिया। सब्जियों में फल आने लगे तो देखने वालों की भीड़ जमा होने लगी।

 

*राप्ती नदी किनारे रेत में लहलहाती सब्जी व फल की फसलें*

*नदी किनारे का रेतीला किनारा अब हरियाली से भर पूर हो गया है*

किसान याकूब अली ने कहा कि लगभग पांच ट्रक सब्जियां प्रतिदिन अन्य जिलों को भेजी जाती हैं। किसानों का कहना है कि अगस्त माह तक एक परिवार पांच से सात लाख रुपए की कमाई करके घर लौटता है। जिला कृषि अधिकारी आरपी राष्णा ने बताया कि पश्मिोत्तर में सब्जी खेती

इरफान शहजाद अली

हमारे यहां का अलग रिवाज है। वहां के किसान सब्जी के फसल उगाने में निपुण होते हैं। उन्हें अच्छी तकनीक का ज्ञान होता है। उन्ना प्रजातियों के बीज का प्रयोग कर यहां के किसान चाहें तो प्रशिक्षण कर के भी रेतीली जमीन में सब्जी की खेती कर मुनाफा कमा सकते हैं।

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