Balrampur, बात निकली है तो बहुत दूर तलक जाएगी
दिनांक 26/6/24 को जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय बलरामपुर के समक्ष थाना रेहरा क्षेत्र के एक व्यक्ति राजू पुत्र सुधई ने अपने ऊपर ज्वलनशील द्रव्य को डालकर आत्मदाह करने का प्रयास किया था ! जिसको समय रहते बचा लिया गया था ! उसके द्वारा दिनांक 15/6/24 को तहसील दिवस तहसील उतरौला में दिए गए प्रार्थना पत्र से बिल्कुल स्पष्ट है कि वह रास्ते के विवाद से व्यथित था और राजस्व विभाग के द्वारा इस मामले का निस्तारण नहीं किया जा रहा था ! जैसा कि जनपद बलरामपुर में सभी लोग जान रहे हैं कि जिला मजिस्ट्रेट महोदय का स्पष्ट रूप से आदेश है कि किसी भी भूमि संबंधी विवाद में पुलिस स्वमेव हस्तक्षेप नहीं करेगी और मौके पर नहीं जाएगी जिसके कारण पुलिस स्वयं मौके पर नहीं जा रही है और बहुत सारे विवाद निस्तारित नहीं हो पा रहे हैं ! क्योंकि राजस्व विभाग की इस तरह के मामलों में कोई रुचि नहीं है ! अब आगे बढ़ते हैं आत्मदाह के प्रकरण में , यह बिल्कुल स्पष्ट है की आत्मदाह करने वाला व्यक्ति या तो स्वयं से आत्महत्या करके धारा 309 आईपीसी का अपराध कर रहा था या फिर किसी से प्रताड़ित होकर या उसके उकसावे में आकर धारा 306 आईपीसी का अपराध कर रहा था अब यह स्पष्ट हो गया की या तो वह पीड़ित था या तो वह अभियुक्त था अब सवाल यह उठता है की कोई भी व्यक्ति किसी अपराध का पीड़ित हो या अभियुक्त हो तो अपराध घटित होने के बाद क्या कार्रवाई होनी चाहिए ! नियमानुसार और कानूनी रूप से तो किसी अपराध की विवेचना या उसकी जांच के लिए संविधान के अनुसार केवल पुलिस ही सशक्त है नियम तो यह था की तत्काल पुलिस को सूचित किया जाता अगर वह व्यक्ति घायल था तो उसको तत्काल इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया जाता अगर घायल नहीं था फिर भी अस्पताल पहुँचा कर और जनपद की फोरेंसिक टीम को बुलाकर उसके शरीर पर पाए गए ज्वलनशील पदार्थ और उसके वस्त्रों को कब्जे में लेकर और उसे मामले में तत्काल संबंधित थाना कोतवाली देहात में अभियोग पंजीकृत कर विवेचनात्मक कार्यवाही प्रारंभ करनी चाहिए थी ! लेकिन इस मामले में ऐसा ना करके तत्काल जिला मजिस्ट्रेट बलरामपुर कार्यालय में मौजूद सभी वरिष्ठ अधिकारी गणों ने उस पीड़ित व्यक्ति को एक कमरे में बंद कर लिया उसके शरीर पर पाए जाने वाले महत्वपूर्ण साक्ष्य को विलोपित कर दिया गया वस्त्रों को साफ कर दिया गया वह कौन सा ज्वलनशील पदार्थ लेकर आया था इसको गायब कर दिया गया और एक तरह से साक्ष्य का विलोपन किया गया जो धारा 201 भारतीय दंड विधान का अपराध है ! उसके बाद संबंधित व्यक्ति के नाम का स्टांप खरीदा गया शपथ पत्र बनवाया गया पहले फुसलाकर झूठा प्रार्थना पत्र बनवाया गया और वीडियो रिकॉर्डिंग बनाई गई सवाल यह उठता है कि केवल आत्म प्रशंसा के लिए और पुलिस विभाग को नीचा दिखाने के लिए और पुलिस विभाग को फसाने के लिए क्या स्वयं के द्वारा अपराध किया जाना उचित है ! इस मामले में आज नहीं तो कल अभियोग जरूर पंजीकृत होगा और इस बात पर विवेचना जरूर होगी की किन-किन अधिकारियों ने साक्ष्य का विलोपन किया है और झूठे साक्ष्य को गढ़ा है और उनका प्रयोग किया है फिर यह मामला बहुत उल्टा पड़ जाएगा !
तत्कालीन जिलाधिकारी महोदय के इस तानाशाही पूर्ण रवैये व कार्यशैली से न जानें कितने राजू जैसे व्यक्ति न्याय की आस छोड़कर मजबूर होकर अपने आप को ही खतम करनें की कोशिश कर रहे हैं , जबकि ऐसे मामलों में पुलिस मजबूर है……