कौन हैं पसमांदा मुसलमान जिन्हें लुभाने में जुटी BJP, क्या साबित होंगे गेमचेंजर
आने वाले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों में अपनी पैठ बनाने के लिए बीजेपी शासित सरकार कई योजनाओं की सौगात लेकर आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों के बीच पिछड़ेपन को रेखांकित करते हुए अपनी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के जरिए समाज के सबसे वंचित वर्गों तक पहुंचने पर जो दिया है।पीएम ने कहा, “हमें 200 से अधिक जिलों और 22,000 से अधिक गांवों में अपनी जनजातियों को सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। हमारे अल्पसंख्यकों में, खासकर मुसलमानों में पसमांदा मुसलमान हैं, हमें उनको लाभ कैसे पहुंचाना चाहिए.. ये सरकार सोच रही है। क्योंकि आजादी के इतने साल बाद भी वे आज भी काफी पीछे हैं।”
जुलाई 2022 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पीएम मोदी ने पसमांदा मुसलमानों के बारे में बात की थी। इसके बाद उन्होंने पिछले महीने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दिल्ली सत्र में पसमांदा के पिछड़ेपन के बारे में जोर देते रहे हैं।
बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में बलिया से आने वाले के पसमांदा समुदाय के नेता दानिश अंसारी में मंत्री भी हैं।
कौन हैं पसमांदा मुसलमान?
‘पसमांदा’ एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है ‘जो पीछे रह गए हैं,’ यह शूद्र (पिछड़े) और अति-शूद्र (दलित) जातियों से संबंधित मुसलमानों की कैटेगरी मानी जाती है। साल 1998 तक पसमांदा मुस्लिम महज एक समूह था, जो मुख्य रूप से बिहार में सक्रिय था।
पसमांदा में वे लोग शामिल हैं जो सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और देश में मुस्लिम समुदाय का बहुमत में आते हैं। पसमांदा शब्द का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश, बिहार और भारत के अन्य हिस्सों में मुस्लिम संघों की तरफ से खुद को ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से जाति की तरफ से उत्पीड़ित मुस्लिम समुदायों के रूप में किया जाता है।
पिछड़े, दलित और आदिवासी मुस्लिम समुदाय अब पसमांदा की पहचान के तहत संगठित हो रहे हैं। इनमें कुंजरे (रायन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अल्वी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), लोहार-बढ़ई (सैफी) ), मनिहार (सिद्दीकी), दरजी (इदरीसी), वांगुज्जर, जैसी जातियां शामिल हैं।
आने वाले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों को अपने हित में करने के लिए बीजेपी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। अब देखना होगा कि वे इसमें कहां तक सफल हो पाते हैं।