छोटी बोतल…खेल बड़ा — कफ सीरफ माफिया की 425 करोड़ वाली तस्करी का काला सच आया सामने!

नशीले पदार्थों की दुनिया में कफ सिरप अब केवल दवा नहीं, बल्कि काले कारोबार की सबसे सुरक्षित ढाल बन चुका है। जहां एक तरफ चिकित्सा जगत इसे खांसी और दर्द के इलाज के लिए उपयोग करता है, वहीं दूसरी तरफ नशे का कारोबार करने वाले गिरोह इसे करोड़ों की कमाई का सबसे आसान और कम जोखिम वाला जरिया मान चुके हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले से सामने आया है, जिसने पूरे देश में हलचल पैदा कर दी है। यहां नशीले कफ सिरप के अवैध व्यापार की जांच में वह चौंकाने वाली जानकारी मिली है, जिसे जानकर पूरा तंत्र हिल गया है।
सोनभद्र। थाना रॉबट्र्सगंज में पंजीकृत नशीले कफ सिरप तस्करी से जुड़े मामले की विवेचना विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की जा रही है। प्रारंभिक जांच के दौरान जो तथ्य सामने आए, उन्होंने अब तक के सबसे बड़े नशा नेटवर्क की परतें खोल दी हैं। पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा ने बताया कि एसआईटी द्वारा की गई जांच में शैली ट्रेडर्स नामक फर्म प्रमुख संदिग्ध के रूप में उभरी है, जिसके बैंक खाते से केवल दो वर्षों में लगभग 425 करोड़ रुपये का संदिग्ध वित्तीय लेन-देन पाया गया है।
जांच आगे बढ़ने पर एसआईटी ने पाया कि नेटवर्क केवल एक फर्म तक सीमित नहीं है। मां कृपा मेडिकल स्टोर और शिविक्षा फर्म (सोनभद्र) सहित दिलीप मेडिकल एजेंसी, आयुष इंटरप्राइजेज और राजेन्द्र एंड संस ड्रग एजेंसी (भदोही) भी जांच के दायरे में आई हैं। शामिल फर्मों के भवन स्वामियों को भी नोटिस जारी किया गया है, जिससे कारोबार से जुड़े संबंधों और संभावित साझेदारी की वास्तविकता उजागर की जा सके।
एसआईटी के अनुसार अब तक 30 बैंक खातों की पहचान कर 60 लाख रुपये की राशि को फ्रीज किया गया है। वित्तीय रिकॉर्ड, ई-वे बिल, स्टॉक बुक और इनवॉइस की जांच से यह भी स्पष्ट हुआ कि कफ सिरप की खरीद-बिक्री कागजों पर तो वैध दिखाई जाती थी, लेकिन असल में माल को अवैध सप्लाई चैन के जरिए अलग-अलग राज्यों में भेजा जाता था, जहां इसे नशे के तौर पर बेचा जाता था।
सबसे बड़ा खुलासा यह रहा कि कैश सर्कुलेशन और बैंक ट्रांजैक्शन का उपयोग सिर्फ कारोबार को वैध दिखाने के लिए किया गया था। इसके बाद एसआईटी ने शैली ट्रेडर्स के चार्टर्ड अकाउंटेंट विष्णु अग्रवाल को नोटिस जारी करते हुए 10 दिसंबर तक सभी वित्तीय लेन-देन, लेजर, जीएसटी और अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
इस अवैध कारोबार की रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ₹150 से ₹180 कीमत वाली कफ सिरप की एक बोतल काले बाजार में 900 से 1400 रुपये तक बेची जाती थी। यही भारी मुनाफा इस गैरकानूनी व्यापार को निरंतर सक्रिय रखता था। नेटवर्क में दवा वितरक, वेयरहाउस मालिक, क्षेत्रीय एजेंट, सप्लाई रूट संचालक और परिवहनकर्ता—सभी की भूमिका जांच के दायरे में आ गई है।
पुलिस इस समय डिजिटल ट्रांजैक्शन, कॉल रिकॉर्ड, जीएसटी डेटा, बिलिंग सिस्टम और फार्मा सप्लाई चैन का गहन विश्लेषण कर रही है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना को भी खारिज नहीं किया गया है और प्रवर्तन निदेशालय (ED) को रिपोर्ट भेजने की तैयारी चल रही है। सूत्रों के मुताबिक आने वाले दिनों में नेटवर्क से जुड़े कई अन्य नाम और गिरफ्तारियां सामने आ सकती हैं।
कफ सिरप की छोटी बोतलें भले ही देखने में मामूली लगें, लेकिन इनके पीछे चल रहा अवैध साम्राज्य अरबों की कमाई और युवाओं के भविष्य को तबाह करने की भयावह कहानी कहता है। सोनभद्र एसआईटी की जांच ने यह तो साबित कर दिया कि नशे का कारोबार हर शहर, हर जिले और हर मेडिकल नेटवर्क के बीच अपनी जगह बना चुका है। अब पूरा देश यह देखना चाहता है कि इस तस्करी साम्राज्य को जड़ से खत्म करने में पुलिस कितनी सफल होती है।
