बड़े अरमानों से सद्दाम हुसैन ने बनवाया था सुपरयॉट किस्मत ऐसी कि कभी कदम तक नहीं रख सका
आज से 20 साल पहले अमेरिका और उसकी सहयोगी सेना ने सामूहिक विनाश के हथियार रखने का आरोप लगाकर इराक पर हमला कर दिया था और बीस दिन के भीतर ही सद्दाम हुसैन की सरकार को अपदस्थ कर दिया था।बीस साल बीत जाने के बाद भी अब तक अमेरिका ये साबित नहीं कर पाया कि इराक के पास घातक हथियार थे। अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को वर्षों पुराने नरसंहार के आरोप में फांसी पर लटका दिया। सद्दाम हुसैन अपने वक्त सबसे चर्चित तानाशाह था। वह एक खुफिया और आलीशान जीवन जीता था। उनके पास दो लग्जरी याट्स थी, जिनमें से एक को अमेरिकी सेना ने बम गिरा कर बर्बाद कर दिया था।
*मछुआरों का स्पॉट बना अल-मंसूर*
इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की सुपरयॉट्स कभी लग्जरी का प्रतीक हुआ करती थीं। लेकिन अब उसके मौत के 20 सालों बाद इन जहाजों की स्थिति काफी बदल चुकी है। सद्दाम हुसैन की अल-मंसूर नाम सुपरयॉट्स को साल 2003 में अमेरिकी सेना ने बम गिरा कर बर्बाद कर डाला था। इसके बाद इस जहाज का एक हिस्सा टूटकर समंदर में डूब गया था। फिलहाल इस जहाज का कुछ हिस्सा मछुआरों के लिए एक स्पॉट बना हुआ है।
*सोने की कराई फिनिशिंग*
इसके अलावा सद्दाम हुसैन के पास एक और कीमती सुपरयॉट थी। इसका नाम बसरा ब्रीज है। यह आज भी सही सलामत मौजूद है। इस सुपरयॉट को इराक-ईरान युद्ध शुरू होने के एक साल बाद 1981 में एक डेनिश शिपयार्ड ने बनाया था। इस सुपरयॉट के भीतर सोने की फिनिशिंग कराई गई थी। उस समय इसकी कीमत 25 मिलियन आंकी गई थी। आज के समय में इस जहाज की कीमत सौ मिलियन डॉलर से भी अधिक बताई जाती है। ये 270 फीट की इस सुपररीच यॉट्स में एक छोटी मस्जिद भी है। इसमें लोगों की जरूरत के मुताबिक हर सुविधा उपलब्ध है।
*इस जहाज में है हर सुविधा*
सुपरयॉट में एक ऑपरेटिंग थिएटर है। इसके भीतर एक प्रेसिडेंशियल सुइट, डाइनिंग रूम और बेडरूम के साथ-साथ 17 छोटे गेस्ट रूम, चालक दल के लिए 18 केबिन और एक क्लिनिक मौजूद हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस जहाज के भीतर रेशम के पर्दे, दीवारों पर महोगनी नक्काशी, कमरों में चमकीले रंग के कालीन और सोने की फिनिशिंग इसे और अधिक आलीशान बनाती हैं।
*जहाज पर कदम भी नहीं रख पाया सद्दाम*
ऐसा कहा जाता है कि यह जहाज के इशारों पर जाने के लिए हर वक्त तैयार रहता था। इस पर सद्दाम हुसैन के लिए नाई की एक कुर्सी के साथ एक ड्रेसिंग रूम भी मौजूद था ताकि वह अपनी ट्रेडमार्क मूछों को अंतिम समय में भी ट्रिम करवा सके। लेकिन 22 सालों तक सद्दाम हुसैन के पास रहने के बाद भी वह कभी इसकी सवारी नहीं कर सका। ईरान के साथ युद्ध के चलते यह नाव ‘ताकत का एक प्रतीक’ बन गई थी। इस वजह से इस जहाज पर हर वक्त हवाई हमले का खतरा मंडराता रहता था। यही वजह थी कि पानी पर चलने वाले इस आलीशान महल पर वह कभी अपना पैर तक नहीं रख सका।